ग्रहों के गोचरीय स्थिति के द्वारा विवाह काल निर्णय ---- भाग 3


अपने पिछले पोस्ट में मैंने विवाह संबंधित  गोचरीय नियमों का उल्लेख किया है। उपरोक्त नियमों के अनुसार  बृहस्पति ग्रह  के गोचर के परिणाम स्वरूप विवाह के  समय की गणना की संभावना  सिमट कर एक वर्ष तक  की रह जाती है ,तब इससे भी सिमित अवधि के किसी ग्रह के गोचरीय प्रभाव की आवश्यकता होती है,इस आवश्यकता पर मंगल ग्रह पूर्णतया खरे उतरते हैं। जिस प्रकार बृहस्पति ग्रह का कुंडली में कुछ विशिष्ट स्थानों पर  अपना  एक  गोचरीय  प्रभाव  है....,उन्ही संवेदनशील बिंदुओं पर से गोचरवश मंगल ग्रह का भ्रमण ( विवाह तिथि से छह माह पूर्व  तक ) भी अति आवश्यक है।

शनि  एवं  गुरु  की  तरह  मंगल ग्रह का  गोचरीय  भ्रमण  निम्न स्थानों पर वांछनीय  है।  इस  भ्रमण का काल  विवाह से छह  माह  पूर्व  तक का है --------

1 .. लग्न तथा सप्तम भाव
2 .. लग्न तथा सप्तमेश
3 ..  लग्नेश  तथा  सप्तम भाव
4 ..  लग्नेश तथा सप्तमेश


इसके अतिरिक्त  मंगल  को छह  महीने की अवधि में निम्न  संवेदनशील बिंदुओं को भी छूना होगा --:

1 .. जन्म शुक्र तथा पंचम भाव
2 .. शुक्र  तथा  पंचमेश
3 ..  पंचम भाव तथा पंचमेश

इस प्रकार अवधि के निर्णय के पश्चात दशा / अंर्तदशा  को लिया जाता है। क्या उस अवधि में मिलने वाली  दशा तथा अंतर्दशा का विवाह सम्बन्धी भाव अथवा ग्रहों से कोई सम्बन्ध है यदि  हाँ  तो विवाह संभावित है।

शेष अगले अंक में  ......... 

आचार्या  दीपिका  श्रीवास्तव 




   

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