ग्रहों के गोचरीय स्थिति के द्वारा विवाह काल निर्णय ---- भाग 4
विवाह के अन्य योग
लग्नेश और सप्तमेश को जोड़ कर जो राशि हो उस राशि में जब गोचर का गुरु पहुँचता है ,तब विवाह का योग होता है। अपनी जन्म राशि के स्वामी और अष्टमेश को जोड़ने से जो राशि आए उस राशि में जब गोचर का गुरु पहुँचता है तब विवाह होता है।
लग्नेश और सप्तमेश के स्पष्ट राश्यादि के योग तुल्य राशि में जब गोचरीय बृहस्पति स्थित रहता है तब विवाह होता है।
गोचर से गुरु 2/5/7/9/11 वे स्थान में होने पर विवाह का योग होता है।
सप्तमेश ,पंचमेश व एकादशेश की दशा -अंतर्दशा में विवाह योग होता है।
लग्नेश की राशि अथवा उसके नवांश राशि से त्रिकोणस्थ राशि में जब गोचर का शुक्र या सप्तम भाव का स्वामी संक्रमण करता है ,तब जातक का विवाह होता है।
1..सप्तम भावस्थ ग्रह
2..सप्तम भाव के दृष्टा ग्रह
3..सप्तम भाव के स्वामी ग्रह
इन तीनों की दशा-अंतर्दशा में जातक का विवाह सम्भव है।
भ्रमण काल में जब लग्नेश सप्तम भावस्थ राशि को संक्रमित करता है,तब उस समय भी जातक का विवाह सम्भव होता है।
सप्तम भाव के स्वामी स्थित राशिपति और उसकी नवांश राशि के स्वामी ग्रहों में जो बलवान हो अथवा शुक्र और उसकी चन्द्रमा में जो बलवान हो उसको दशा -अंतर्दशा में जब गोचर का गुरु उस बलि ग्रह द्वारा अधिष्ठित राशि से त्रिकोण में संक्रमित होता है ,तब जातक का विवाह सम्भव होता है।
वृश्चिक राशिगत सप्तमेश शनि की अपेक्षा कन्या राशिगत उसका नवांशेष बुध बलवान है तो कन्या से त्रिकोण राशियों मकर या वृष राशि में गोचर के गुरु के संक्रमणकाल में जातक का पानी ग्रहण होगा।
शुक्र और चन्द्रमा में जो बलि हो उससे भी इसी प्रकार विचार करना चाहिए। इस प्रकार ज्योतिषीय ग्रंथो में विवाह का काल निर्धारण गोचरीय स्थितियों के द्वारा बताया गया है।
आचार्य दीपिका श्रीवास्तव
लग्नेश और सप्तमेश को जोड़ कर जो राशि हो उस राशि में जब गोचर का गुरु पहुँचता है ,तब विवाह का योग होता है। अपनी जन्म राशि के स्वामी और अष्टमेश को जोड़ने से जो राशि आए उस राशि में जब गोचर का गुरु पहुँचता है तब विवाह होता है।
लग्नेश और सप्तमेश के स्पष्ट राश्यादि के योग तुल्य राशि में जब गोचरीय बृहस्पति स्थित रहता है तब विवाह होता है।
गोचर से गुरु 2/5/7/9/11 वे स्थान में होने पर विवाह का योग होता है।
सप्तमेश ,पंचमेश व एकादशेश की दशा -अंतर्दशा में विवाह योग होता है।
लग्नेश की राशि अथवा उसके नवांश राशि से त्रिकोणस्थ राशि में जब गोचर का शुक्र या सप्तम भाव का स्वामी संक्रमण करता है ,तब जातक का विवाह होता है।
1..सप्तम भावस्थ ग्रह
2..सप्तम भाव के दृष्टा ग्रह
3..सप्तम भाव के स्वामी ग्रह
इन तीनों की दशा-अंतर्दशा में जातक का विवाह सम्भव है।
भ्रमण काल में जब लग्नेश सप्तम भावस्थ राशि को संक्रमित करता है,तब उस समय भी जातक का विवाह सम्भव होता है।
सप्तम भाव के स्वामी स्थित राशिपति और उसकी नवांश राशि के स्वामी ग्रहों में जो बलवान हो अथवा शुक्र और उसकी चन्द्रमा में जो बलवान हो उसको दशा -अंतर्दशा में जब गोचर का गुरु उस बलि ग्रह द्वारा अधिष्ठित राशि से त्रिकोण में संक्रमित होता है ,तब जातक का विवाह सम्भव होता है।
वृश्चिक राशिगत सप्तमेश शनि की अपेक्षा कन्या राशिगत उसका नवांशेष बुध बलवान है तो कन्या से त्रिकोण राशियों मकर या वृष राशि में गोचर के गुरु के संक्रमणकाल में जातक का पानी ग्रहण होगा।
शुक्र और चन्द्रमा में जो बलि हो उससे भी इसी प्रकार विचार करना चाहिए। इस प्रकार ज्योतिषीय ग्रंथो में विवाह का काल निर्धारण गोचरीय स्थितियों के द्वारा बताया गया है।
आचार्य दीपिका श्रीवास्तव
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