ग्रहों के गोचरीय स्थिति के द्वारा विवाह काल निर्णय


आकाश में स्थित ग्रह अपने -अपने  और अपनी -अपनी गति से सदैव भ्रमण करते हुए एक राशि से दूसरीं राशि में प्रवेश करते हैं। जन्म समय में यह ग्रह जिस राशि में पाए जाते हैं वह राशि उनकी जन्मकालीन अवस्था कहलाती है,जो की जन्म कुंडली का आधार है और जन्म समय के अनन्तर किसी भी समय वे अपनी गति से जिस राशि में उनकी स्थिति '' गोचर '' अथवा संचार कहलाती है। ''गो '' शब्द संस्कृत भाषा  के 'गम्'   धातु से बनता  है और इसका अर्थ है '' चलनेवाला " आकाश में करोड़ों तारे हैं ,वे सब स्थिर हैं। तारों से ग्रहों की पृथकता दर्शाने के लिए उनका नाम ''गो " अर्थात  चलनेवाला रखा गया।  "चर " शब्द का अर्थ भी चाल अथवा चलन से है, तो
''गोचर '' शब्द का अर्थ हुआ ग्रहों का चलन अर्थात  चलन एवं अस्थिर अवस्था में ग्रहों का परिवर्तन प्रभाव।
                                             गोचर ग्रहों के प्रभाव  उनकी राशि  परिवर्तन के साथ -साथ बदलते रहते हैं। 

जातक पर चल रहे  वर्त्तमान समय की शुभाशुभ  जानकारी के लिए गोचर विचार सरल एवं उपयोगी साधन है। 
विवाह काल निर्णय में  गोचर विचार अत्यंत महत्वपूर्ण है  क्योंकि  जन्म कुंडली की अच्छी बातें भी अशुभ विवाह काल में विघ्नित होती हैं परन्तु वह ख़राब बातें भी काफी हद तक सुधर जातीं हैं। अतः विवाह काल क निर्णय  सावधानी पूर्वक करना  अति आवश्यक है। 

ज्योतिष शास्त्र  के आचार्यों ने कहा है की  16 संस्कारों  में विवाह जीवन का सबसे प्रमुख संस्कार है ,प्रारब्ध की एक करवट है, और विवाह काल गणना ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण अंग है।


विवाह काल निर्धारण  

विवाह काल निर्णय  गुरु और शनि के संयुक्त  गोचर को प्रभावशाली  माना गया है। गोचर में इनका भ्रमण  
अथवा  दृष्टि निम्न  स्थानों  पर होनी  अनिवार्य है। 


1 ....  लग्न  तथा सप्तम  भाव में 

2 ....  लग्न तथा सप्तमेश पर  

3 .....  लग्नेश तथा  सप्तम भाव में  

4 .....  लग्नेश  तथा  सप्तमेश पर  

  ऐसी  गोचरीय स्थिति हो तब शनि 27  मास  की अवधि  के  भीतर तथा  बृहस्पति  12  मास की  अवधि  में इस विषय  सम्बन्धी फल दे सकता है। 

शेष अगले अंक में........ 

आचार्या  दीपिका श्रीवास्तव 
























  



                                             

                               



  










  



                                             







  



                                             

                               



  






















  



                                             

                               



  










  



                                             







  



                                             

                               



  

















































आकाश में स्थित ग्रह अपने -अपने  और अपनी -अपनी गति से सदैव भ्रमण करते हुए एक राशि से दूसरीं राशि में प्रवेश करते हैं। जन्म समय में यह ग्रह जिस राशि में पाए जाते हैं वह राशि उनकी जन्मकालीन अवस्था कहलाती है,जो की जन्म कुंडली का आधार है और जन्म समय के अनन्तर किसी भी समय वे अपनी गति से जिस राशि में उनकी स्थिति '' गोचर '' अथवा संचार कहलाती है। ''गो '' शब्द संस्कृत भाषा  के 'गम्'   धातु से बनता  है और इसका अर्थ है '' चलनेवाला " आकाश में करोड़ों तारे हैं ,वे सब स्थिर हैं। तारों से ग्रहों की पृथकता दर्शाने के लिए उनका नाम ''गो " अर्थात  चलनेवाला रखा गया।  "चर " शब्द का अर्थ भी चाल अथवा चलन से है, तो
''गोचर '' शब्द का अर्थ हुआ ग्रहों का चलन अर्थात  चलन एवं अस्थिर अवस्था में ग्रहों का परिवर्तन प्रभाव।
                                             गोचर ग्रहों के प्रभाव  उनकी राशि  परिवर्तन के साथ -साथ बदलते रहते हैं। 

जातक पर चल रहे  वर्त्तमान समय की शुभाशुभ  जानकारी के लिए गोचर विचार सरल एवं उपयोगी साधन है। 
विवाह काल निर्णय में  गोचर विचार अत्यंत महत्वपूर्ण है  क्योंकि  जन्म कुंडली की अच्छी बातें भी अशुभ विवाह काल में विघ्नित होती हैं परन्तु वह ख़राब बातें भी काफी हद तक सुधर जातीं हैं। अतः विवाह काल क निर्णय  सावधानी पूर्वक करना  अति आवश्यक है। 

ज्योतिष शास्त्र  के आचार्यों ने कहा है की  16 संस्कारों  में विवाह जीवन का सबसे प्रमुख संस्कार है ,प्रारब्ध की एक करवट है, और विवाह काल गणना ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण अंग है।


विवाह काल निर्धारण  

विवाह काल निर्णय  गुरु और शनि के संयुक्त  गोचर को प्रभावशाली  माना गया है। गोचर में इनका भ्रमण  
अथवा  दृष्टि निम्न  स्थानों  पर होनी  अनिवार्य है। 


1 ....  लग्न  तथा सप्तम  भाव में 

2 ....  लग्न तथा सप्तमेश पर  

3 .....  लग्नेश तथा  सप्तम भाव में  

4 .....  लग्नेश  तथा  सप्तमेश पर  

  ऐसी  गोचरीय स्थिति हो तब शनि 27  मास  की अवधि  के  भीतर तथा  बृहस्पति  12  मास की  अवधि  में इस विषय  सम्बन्धी फल दे सकता है। 

शेष अगले अंक में........ 

आचार्या  दीपिका श्रीवास्तव 
7462019762 





















  



                                             

                               



  










  



                                             







  



                                             

                               



  






















  



                                             

                               



  










  



                                             







  

आकाश में स्थित ग्रह अपने -अपने  और अपनी -अपनी गति से सदैव भ्रमण करते हुए एक राशि से दूसरीं राशि में प्रवेश करते हैं। जन्म समय में यह ग्रह जिस राशि में पाए जाते हैं वह राशि उनकी जन्मकालीन अवस्था कहलाती है,जो की जन्म कुंडली का आधार है और जन्म समय के अनन्तर किसी भी समय वे अपनी गति से जिस राशि में उनकी स्थिति '' गोचर '' अथवा संचार कहलाती है। ''गो '' शब्द संस्कृत भाषा  के 'गम्'   धातु से बनता  है और इसका अर्थ है '' चलनेवाला " आकाश में करोड़ों तारे हैं ,वे सब स्थिर हैं। तारों से ग्रहों की पृथकता दर्शाने के लिए उनका नाम ''गो " अर्थात  चलनेवाला रखा गया।  "चर " शब्द का अर्थ भी चाल अथवा चलन से है, तो
''गोचर '' शब्द का अर्थ हुआ ग्रहों का चलन अर्थात  चलन एवं अस्थिर अवस्था में ग्रहों का परिवर्तन प्रभाव।
                                             गोचर ग्रहों के प्रभाव  उनकी राशि  परिवर्तन के साथ -साथ बदलते रहते हैं। 

जातक पर चल रहे  वर्त्तमान समय की शुभाशुभ  जानकारी के लिए गोचर विचार सरल एवं उपयोगी साधन है। 
विवाह काल निर्णय में  गोचर विचार अत्यंत महत्वपूर्ण है  क्योंकि  जन्म कुंडली की अच्छी बातें भी अशुभ विवाह काल में विघ्नित होती हैं परन्तु वह ख़राब बातें भी काफी हद तक सुधर जातीं हैं। अतः विवाह काल क निर्णय  सावधानी पूर्वक करना  अति आवश्यक है। 

ज्योतिष शास्त्र  के आचार्यों ने कहा है की  16 संस्कारों  में विवाह जीवन का सबसे प्रमुख संस्कार है ,प्रारब्ध की एक करवट है, और विवाह काल गणना ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण अंग है।


विवाह काल निर्धारण  

विवाह काल निर्णय  गुरु और शनि के संयुक्त  गोचर को प्रभावशाली  माना गया है। गोचर में इनका भ्रमण  
अथवा  दृष्टि निम्न  स्थानों  पर होनी  अनिवार्य है। 


1 ....  लग्न  तथा सप्तम  भाव में 

2 ....  लग्न तथा सप्तमेश पर  

3 .....  लग्नेश तथा  सप्तम भाव में  

4 .....  लग्नेश  तथा  सप्तमेश पर  

  ऐसी  गोचरीय स्थिति हो तब शनि 27  मास  की अवधि  के  भीतर तथा  बृहस्पति  12  मास की  अवधि  में इस विषय  सम्बन्धी फल दे सकता है। 

शेष अगले अंक में........ 

आचार्या  दीपिका श्रीवास्तव 
7462019762 
























 आकाश में स्थित ग्रह अपने -अपने  और अपनी -अपनी गति से सदैव भ्रमण करते हुए एक राशि से दूसरीं राशि में प्रवेश करते हैं। जन्म समय में यह ग्रह जिस राशि में पाए जाते हैं वह राशि उनकी जन्मकालीन अवस्था कहलाती है,जो की जन्म कुंडली का आधार है और जन्म समय के अनन्तर किसी भी समय वे अपनी गति से जिस राशि में उनकी स्थिति '' गोचर '' अथवा संचार कहलाती है। ''गो '' शब्द संस्कृत भाषा  के 'गम्'   धातु से बनता  है और इसका अर्थ है '' चलनेवाला " आकाश में करोड़ों तारे हैं ,वे सब स्थिर हैं। तारों से ग्रहों की पृथकता दर्शाने के लिए उनका नाम ''गो " अर्थात  चलनेवाला रखा गया।  "चर " शब्द का अर्थ भी चाल अथवा चलन से है, तो
''गोचर '' शब्द का अर्थ हुआ ग्रहों का चलन अर्थात  चलन एवं अस्थिर अवस्था में ग्रहों का परिवर्तन प्रभाव।
                                             गोचर ग्रहों के प्रभाव  उनकी राशि  परिवर्तन के साथ -साथ बदलते रहते हैं। 

जातक पर चल रहे  वर्त्तमान समय की शुभाशुभ  जानकारी के लिए गोचर विचार सरल एवं उपयोगी साधन है। 
विवाह काल निर्णय में  गोचर विचार अत्यंत महत्वपूर्ण है  क्योंकि  जन्म कुंडली की अच्छी बातें भी अशुभ विवाह काल में विघ्नित होती हैं परन्तु वह ख़राब बातें भी काफी हद तक सुधर जातीं हैं। अतः विवाह काल क निर्णय  सावधानी पूर्वक करना  अति आवश्यक है। 

ज्योतिष शास्त्र  के आचार्यों ने कहा है की  16 संस्कारों  में विवाह जीवन का सबसे प्रमुख संस्कार है ,प्रारब्ध की एक करवट है, और विवाह काल गणना ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण अंग है।


विवाह काल निर्धारण  

विवाह काल निर्णय  गुरु और शनि के संयुक्त  गोचर को प्रभावशाली  माना गया है। गोचर में इनका भ्रमण  
अथवा  दृष्टि निम्न  स्थानों  पर होनी  अनिवार्य है। 


1 ....  लग्न  तथा सप्तम  भाव में 

2 ....  लग्न तथा सप्तमेश पर  

3 .....  लग्नेश तथा  सप्तम भाव में  

4 .....  लग्नेश  तथा  सप्तमेश पर  

  ऐसी  गोचरीय स्थिति हो तब शनि 27  मास  की अवधि  के  भीतर तथा  बृहस्पति  12  मास की  अवधि  में इस विषय  सम्बन्धी फल दे सकता है। 

शेष अगले अंक में........ 

आचार्या  दीपिका श्रीवास्तव 
7462019762 





















  



                                             

                               



  










  



                                             







  



                                             

                               



  






















  



                                             

                               



  










  



                                             







  



                                             

                               



  













                                             

                               



  










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