पंञ्चमहापुरुष राज योग



भरतीय ज्योतिष में राजयोगों को विशेष महत्व दिया गया है इसमें सबसे महत्वपूर्ण माने गए हैं पञ्चमहापुरुष राजयोग। 
बलवान मंगल ,बुध ,बृहस्पति ,शुक्र और शनि यदि अपनी राशि ,मूल त्रिकोण या अपनी उच्च राशि में हों और केंद्र में स्थित हों तो क्रम से रूचक योग ,भद्र योग ,हंस योग,मालव्य योग ,शश योग होता है। अर्थात--:

गुरू  
स्वराशि ,स्वमूलत्रिकोण अथवा अपने उच्च में यदि लग्न,चतुर्थ,सप्तम या दशम भाव में स्थित हो तो हंस योग होता है। इस योग में उतपन्न होने वाले जातक शास्त्रज्ञान में परायण ,अत्यंत निपुण ,अच्छे आचरण करने वाले ,दीर्घायु ,हंस स्वर ,ऊँची नासिका ,लाल मुख ,कफ़ प्रकृति ,गौरांग होते हैं।
शुक्र 
स्वराशि ,स्वमूलत्रिकोण अथवा अपने उच्च में यदि लग्न,चतुर्थ,सप्तम या दशम भाव में स्थित हो तो मालव्य योग होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक स्त्री -स्वभाव वाला ,सुंदर शरीर और नेत्र वाला ,गुणी ,तेजस्वी ,पुत्र ,स्त्री ,वाहन  युक्त ,धनी ,शास्त्रार्थ का पण्डित ,मन्त्रज्ञ ,चतुर,त्यागी ,परस्त्रीरत एवं विवेकी होता है।
शनि 
स्वराशि ,स्वमूलत्रिकोण अथवा अपने उच्च में यदि लग्न,चतुर्थ,सप्तम या दशम भाव में स्थित हो तो शश योग होता है। शश योग में जन्म लेनेवाला व्यक्ति राजा अथवा राजमंत्री ,कठोर मन ,धातु के व्यवसाय में रूचि रखने वाला, दानशील ,क्रोधी आँखे ,तेजस्वी ,माता के प्रति समर्पित ,वीर ,श्याम वर्ण ,सुखी होता है।
बुध 
स्वराशि ,स्वमूलत्रिकोण अथवा अपने उच्च में यदि लग्न,चतुर्थ,सप्तम या दशम भाव में स्थित हो तो भद्र योग होता है। इस योग में उत्पन्न जातक शेर के समान मुख ,गज के सामान गति वाला ,चौड़ी छाती वाला ,लम्बा और मोटा,प्रखर बुद्धि ,धन एवं यश संपन्न होता है।
मंगल
स्वराशि ,स्वमूलत्रिकोण अथवा अपने उच्च में यदि लग्न,चतुर्थ,सप्तम या दशम भाव में स्थित हो तो रूचक योग होता है। इस योग में जन्म लेने वाले जातक बलवान,यशस्वी ,शीलवान ,विद्वान ,कुशल,वक्ता ,धनि ,सौन्दर्य युक्त ,शत्रु को जीतने वाला ,कोमल शरीर  और तेजस्वी होता है 



                   

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