कुंडली में मांगलिक दोष का विचार एवं परिहार

"मंगल" नौ ग्रहों में से एक ग्रह का नाम है जो सौरमंडल का एक सदस्य है।अपने रूप-आकार व स्वभाव के कारण इन्हें प्रसिद्धि व्याप्त है। यह ग्रह लाल आभा वाला ग्रह है। जब यह पृथ्वी के समीप चक्कर लगाते हुए पहुंचता है तो उस समय यह लाल अंगारे के समान दिखाई पड़ता है। इस ग्रह की प्रधान विशेषता यह है कि जब यह धरती की सीध में आता है तब इसका उदय माना जाता है और उदय के पश्चात 300 दिनों के बाद यह वक्री से मार्गी होकर 60 दिनों तक चलता है। बाद में फिर अपने सामान्य परिक्रमा मार्ग पर आकर 300 दिनों तक संचालित रहता है ऐसी स्थिति को मंगल का अस्त होना कहा जाता है।


मंगल के संबंध में पुराणों में अनेक घटनाओं का वर्णन है जो इस प्रकार है......

"स्कन्द पुराण" में कहा गया है कि मंगल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के पसीने की बूंदें से धरती द्वारा हुई थी।

"महाभारत" में वर्णन है कि मंगल का जन्म भगवान कार्तिकेय के शरीर से हुआ था।

"वामन पुराण "के मतानुसार मंगल की उत्पत्ति तब हुई थी जब भगवान भोलेनाथ ने "महासुर अंधक" का वध किया था।

संपूर्ण मतों में से ज्यादातर का मानना है कि मंगल पृथ्वी का पुत्र है ,अतः इनका नाम "भौम" भी है।

मंगल का वर्ण......... मंगल ग्रह का रंग लाल है।

 मंगल का अन्य नाम......

मंगल ग्रह के विभिन्न नाम इस प्रकार हैं...... भौम, महीसुर, भूमि सुत ,अग्नि ,अंगारक,कुज एवं रुधिर।

मंगल की दिशा

आकाश मंडल में मंगल की अवस्थिति  दक्षिण दिशा को माना गया है।



विवाह में मंगल दोष विचार


मंगल दोष का विचार वर-वधू की कुंडली मिलान के अंतर्गत किया जाता है। मंगल दोष को कुज दोष ,भौम दोष, मांगलिक दोष आदि नामों से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में इसे कलत्र दोष के नाम से जाना जाता है।  यदि किसी जातक की कुंडली मंगल दोष से प्रभावित है तो उसे मांगलिक कहा जाता है।वर-वधू की कुंडली मिलान के समय मांगलिक विचार किया जाता है। 

ज्यादातर कुंडलियां केवल ग्रहों की विवेचना में और अदूरदर्शिता के कारण मांगलिक होने जैसी बन जाती हैं ,जबकि वह मांगलिक नहीं होती, बल्कि उन कुंडलियों के अनेक योग जीवन में शुभ फलदायी तथा दांपत्य क्षेत्र की समस्त संतोषप्रद उपलब्धियों , आकांक्षाओं के कारण होते हैं। विचारणीय तथ्य यह है कि भारतवासियों में परंपरा या ज्योतिष के अनुयायी परिवार जन्मकुंडली की मांगलिकता से भयभीत होकर चिंतित रहते हैं। कुंडली में वैवाहिक जुड़ाव या कुंडली मिलान में सबसे ज्यादा डराया जाता है मंगल दोष को लेकर । विवाह के पश्चात भी अपने प्रतिकूल अवसरों पर मांगलिक कुंडली ही परिणाम की उत्तरदाई ठहराया जाती है। जबकि वास्तविकता यह है कि कुछ कुंडलियां ही ऐसी हैं जो वास्तविक मंगली होती है या दोष पूर्ण होती हैं । इस विषय पर मंगल से संबंधित जन्मकुंडली पर विचार करने के लिए ऋषि वशिष्ठ, गर्ग ऋषि, ऋषि पराशर,  भृगु आदी अनेक महाऋषियों  के अनुसंधान उपरांत निर्मित आदेशों को संग्रह कर ज्योतिष के पटल से समस्त समस्याएं सुलभ करने का प्रयास  है। विवाह गृहस्थाश्रम की आधारशिला है विवाह के माध्यम से मनुष्य देव ऋषि एवं पित्र ऋण से मुक्त होकर परम कल्याण को प्राप्त करता है। विवाह संबंध करने से पहले लड़के-लड़कियों का गुण मिलान किया जाता है ,ताकि वैवाहिक जीवन सुखमय हो।



कुंडली के इन भाव में मंगल ग्रह के उपस्थित होने से मंगल दोष प्रभावी होता है



लग्न ,चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और बारहवें स्थान में मंगल स्तिथ होने से मंगल दोष माना गया है और कही -कहीं द्वितीय भाव के मंगल से भी मांगलिक दोष माना जाता है।कुंडली के इन स्थानों पर मंगल या शनि या पाप ग्रह होने से कलह ,भवन, भाग्य -सौभाग्य आयु और द्रव्य की हानि होती है,यदि जन्म कुंडली मंगली हो तो ,अष्टम से आयु, द्वादश से जीविका, संपत्ति को कष्ट होता है। मांगलिक कुंडली विचार के लिए शास्त्रों में स्पष्ट निर्देश है जिन कुंडलियों में शास्त्र निर्देशित ग्रह है उनका विवेचन जन्मांक में भली-भांति करने के पश्चात ही मांगलिक दोष का निर्णय करना चाहिए।

  • कुंडली के  प्रथम भाव यानी कि लग्न भाव में मंगल हो तो व्यक्ति मांगलिक होता है। मांगलिक का विवाह अगर अमांगलिक से होता है तो अनावश्यक विवाद होता है ,तलाक की स्थिति बनती है।

  • जब मंगल दूसरे घर में होता सक्रिय और नकारात्मक होता है तो विवाहित जीवन में परेशानी देता है ,दूसरा विवाह भी करता है।  

  • जब मंगल चौथे घर में होता है ,पेशेवर व्यक्तियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है ,अपनी नौकरी से असंतुष्ट रखता है जिससे कि बार-बार नौकरी बदलनी पड़ती है।
  • सातवें घर में मंगल का होना व्यक्ति को गुस्सैल बनाता है।
  • आठवें घर में मंगल व्यक्ति को आलसी बनाता है मूडी बनाता है ,अचानक गुस्सा आता है। मंगल के इस घर में होने से व्यक्ति के साथ  दुर्घटनायें भी हो सकतीं  है।
  • मंगल 12 वें घर में हो तो मानसिक अशांति पैदा करेगा।इस घर में मंगल गैरकानूनी कार्यो में शामिल होने की इच्छा प्रदान करेगा।
  •  कुंडली के प्रथम भाव में मंगल और शनि हों और राहु क्षीण चंद्रमा के साथ हो तथा शत्रु राशि कुंभ या मकर में हो तो समझिए व्यक्ति मांगलिक दोष से पीड़ित है।
  • लगातार प्रयासों के बाद भी विवाह में अड़चनें आ रही हैं और विवाह में देरी हो रही है, घर में दुख एवं क्लेश का भाव बना रहता है तो कुंडली में मंगल विराजमान है।
  •  आंखों की पुतलियों पर मंगल का बहुत ज्यादा असर होता है, इसके प्रभाव से व्यक्ति की आंखों की पुतलियां ऊपर की ओर अधिक झुकी होती हैं ,इनकी एक आंख में रौशनी कम हो जाती है या फिर एक आंख से दिखना बिल्कुल बंद हो जाता है।


मंगल दोष का परिहार 

  • जन्म चक्र में मंगल लग्न ,चतुर्थ, सप्तम ,अष्टम अथवा द्वादश भाव में होने पर भी यदि किसी भी भाव का मंगल मेष या वृषभ राशि का हो तो मंगल दोष नहीं होता।
  • मिथुन राशि का मंगल सप्तम भाव में बैठा हो या जन्मपत्रिका कर्क लग्न की होने पर अष्टम भाव का मंगल हो अथवा कन्या लग्न में प्रथम ,चतुर्थ और सप्तम भाव में मंगल होने पर भी मांगलिक दोष ना होकर शुभ फलकारी होता है। 

  • जन्मपत्रिका में यदि दूसरे भाव में शुक्र हो या मंगल के साथ राहु हो अथवा मंगल को गुरु देखता हो तो मंगल शुभ होकर समृद्धिकारी हो जाता है।  

  • कुंडली में मंगल लग्न ,चतुर्थ ,सप्तम ,अष्टम अथवा द्वादश भाव में हो तथा मंगल के साथ यदि चन्द्रमा ,गुरु अथवा  शनि हो या शनि की पूर्ण दृष्टि मंगल पर पड़ रही हो तो मंगल दोष  नहीं  होता  है।

  • कुंडली में मंगल लग्न ,चतुर्थ ,सप्तम ,अष्टम एवं द्वादश भाव में होने पर यदि केंद्र अथवा त्रिकोण में  गुरु हो  या  केंद्र में चन्द्रमा हो अथवा छठे या  ग्यारहवें भाव में राहु हो तो ऐसी कुंडली में मंगल दोष नहीं होता।                                                                                                                                                
  • अगर मंगल दोष के साथ व्यक्ति का जन्म मंगलवार को होता है तो इस दोष का असर खत्म हो जाता है।                                                                                                                                             
  • मांगलिक व्यक्ति की शादी मांगलिक व्यक्ति से ही हो तो इस दोष का प्रभाव दोनों के लिए समाप्त हो जाता है।                                                                                                                                                       
  • वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंभ विवाह ,भगवान विष्णु की चांदी या सोने की मूर्ति के साथ विवाह से इस दोष को समाप्त किया जा सकता है।
 किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह ले कर ही उपाय करें। 








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