कीर्ति एवं सम्मान योग
इस दुनियाँ में सभी यश ,सम्मान,सफलता चाहते हैं,प्रत्येक व्यक्ति की यही इच्छा रहती है की जीवन में किसी प्रकार की कमीं न हो। ईश्वर किसी को यह जन्म से देते हैं और किसी को मेहनत से प्राप्त होता है तो कोई जीवन भर प्रयास ही करता रहता है। प्रत्येक व्यक्ति में महत्वकांक्षा की भावना होती है,और सफल होने के लिए लोग हर संभव प्रयास भी लोग करते हैं। आज सफलता प्राप्ति के लिए साध्य मुख्य हो गया है और साधन की सात्विकता गौण हो गयी है। इस प्रकार हम विश्लेषण करें तो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध होने वाले लोगों का प्रतिशत 1 प्रतिशत से भी कम है। प्रत्येक व्यक्ति यह जानना चाहता है की क्या वो सफल और धनी होगा? व्यक्ति की कुंडली में 9 ग्रह,12राशियाँ होती हैं,वैदिक ज्योतिष के अनुसार हमारे जीवन की हर छोटी-बड़ी घटना इन 12 राशियों और 9 ग्रहों से जुड़ी होती हैं। यह सब व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही होता है। और आज इस आलेख में हम यही जानने का प्रयास करेंगे की व्यक्ति के जीवन में कीर्ति एवं सम्मान के योग कौन से होते हैं।
1.. यदि किसी जातक की कुंडली में बुध लग्न में हो तथा चतुर्थेश शुभ गृह हो तथा दूसरे शुभ ग्रहों के द्वारा देखा जाता हो तो ऐसा जातक अपने बन्धुजनो ,इष्ट मित्रों द्वारा सम्मान प्राप्त करता है।
2.. जन्मकुंडली में नवमांश कुंडली का स्वामी उच्च होकर केंद्र या त्रिकोण में हो तथा लग्नेश बलवान हो तो ऐसा जातक प्रभावशाली राजा के द्वारा आदर एवं सम्मान पाने वाला ,सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है।
3.. यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में सूर्य,चन्द्रमा एवं मंगल एक -दूसरे से त्रिकोण में हो तो यह योग होता है। ऐसे योग वाला जातक भाग्यशाली दीर्घजीवी ,धनी एवं शत्रुओं को भयभीत करने वाला पूर्ण पराक्रमी होता है।
4.. कुंडली में षष्ठेश नीच राशि का हो तथा दशमेश परमोच्च का हो तो ऐसा जातक दीर्घ जीवी होता है। जीवन के सभी क्षेत्रों में जातक को सफलता मिलती है।
5.. किसी जातक की कुंडली में भाग्येश द्वितीय (धन भाव) में हो तथा धनेश ( द्वितीयेश ) भाग्य भाव में हो अर्थात द्वितीयेश एवं भाग्येश में स्थान परिवर्तन योग हो और लग्नेश ( लग्न,चतुर्थ,पंचम,सप्तम,नवम,दशम ) भावों में हो तो ऐसा जातक प्रतापवान,बुद्धिमान,कुशल,कृतज्ञ,वेदशास्त्री है।
6.. यदि किसी का मनुष्य जन्म शुभ दिन (सोमवार,बुधवार,बृहस्पतिवार,शुक्रवार ) को हुआ हो तथा उस दिन वार का स्वामी सूर्य के साथ हो तो जातक नाना प्रकार के पदार्थ तथा सुखों को प्राप्त करता है।
7.. यदि लग्न में तीन शुभ ग्रह हों तो ऐसा जातक राजा अथवा राजा समान वैभव वाला होता है। ऐसा जातक सुखी जीवन व्यतीत करता है।
8.. यदि जातक की जन्मकुंडली में छठे,सातवें एवं आठवें भाव में शुभ ग्रह हों तथा उनकेऊपर किसी पाप ग्रह की दृष्टि अथवा युति न हो तो ऐसा जातक विद्वान,हृष्ट -पुष्ट,स्वस्थ,सबल पूर्ण त्यागी ,निःस्वार्थ प्रेम में विश्वास करने वाला होता है।
आचार्या दीपिका श्रीवास्तव
1.. यदि किसी जातक की कुंडली में बुध लग्न में हो तथा चतुर्थेश शुभ गृह हो तथा दूसरे शुभ ग्रहों के द्वारा देखा जाता हो तो ऐसा जातक अपने बन्धुजनो ,इष्ट मित्रों द्वारा सम्मान प्राप्त करता है।
2.. जन्मकुंडली में नवमांश कुंडली का स्वामी उच्च होकर केंद्र या त्रिकोण में हो तथा लग्नेश बलवान हो तो ऐसा जातक प्रभावशाली राजा के द्वारा आदर एवं सम्मान पाने वाला ,सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है।
3.. यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में सूर्य,चन्द्रमा एवं मंगल एक -दूसरे से त्रिकोण में हो तो यह योग होता है। ऐसे योग वाला जातक भाग्यशाली दीर्घजीवी ,धनी एवं शत्रुओं को भयभीत करने वाला पूर्ण पराक्रमी होता है।
4.. कुंडली में षष्ठेश नीच राशि का हो तथा दशमेश परमोच्च का हो तो ऐसा जातक दीर्घ जीवी होता है। जीवन के सभी क्षेत्रों में जातक को सफलता मिलती है।
5.. किसी जातक की कुंडली में भाग्येश द्वितीय (धन भाव) में हो तथा धनेश ( द्वितीयेश ) भाग्य भाव में हो अर्थात द्वितीयेश एवं भाग्येश में स्थान परिवर्तन योग हो और लग्नेश ( लग्न,चतुर्थ,पंचम,सप्तम,नवम,दशम ) भावों में हो तो ऐसा जातक प्रतापवान,बुद्धिमान,कुशल,कृतज्ञ,वेदशास्त्री है।
6.. यदि किसी का मनुष्य जन्म शुभ दिन (सोमवार,बुधवार,बृहस्पतिवार,शुक्रवार ) को हुआ हो तथा उस दिन वार का स्वामी सूर्य के साथ हो तो जातक नाना प्रकार के पदार्थ तथा सुखों को प्राप्त करता है।
7.. यदि लग्न में तीन शुभ ग्रह हों तो ऐसा जातक राजा अथवा राजा समान वैभव वाला होता है। ऐसा जातक सुखी जीवन व्यतीत करता है।
8.. यदि जातक की जन्मकुंडली में छठे,सातवें एवं आठवें भाव में शुभ ग्रह हों तथा उनकेऊपर किसी पाप ग्रह की दृष्टि अथवा युति न हो तो ऐसा जातक विद्वान,हृष्ट -पुष्ट,स्वस्थ,सबल पूर्ण त्यागी ,निःस्वार्थ प्रेम में विश्वास करने वाला होता है।
आचार्या दीपिका श्रीवास्तव
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