भाग्योदय का समय
जन्म कुंडली मनुष्य के जीवन का आइना होती है। कुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना तो आवश्यक है ही ,भाग्य से सम्बंधित ग्रहों का शुभ होना तथा उनकी दशा-महादशा का सही समय पर व्यक्ति के जीवन में आना भी उतना ही आवश्यक है अन्यथा कुंडली अच्छी होने पर भी यदि कार्य करने की उम्र शत्रु या नीच ग्रहों की दशा में ही बीत रही हो तो लाख परिश्रम करने के बाद भी उसका फल सही समय पर नहीं मिलेगा।
भाग्य या किस्मत ऐसे शब्द हैं जिनका हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव माना जाता है। किसी भी प्रकार के सुख-दुःख ,अमीरी -ग़रीबी को भाग्य से जोड़ कर ही देखा जाता है। सभी लोग जानना चाहते हैं कि हमारा अच्छा समय कब आएगा।
सबसे पहले यह जानना होगा की कुंडली में भाग्य भाव का स्वामी कौन सा ग्रह है और किस स्थिति में है ,कितना बलवान है। भाग्येश की किन -किन ग्रहों के साथ युति है या दृष्टि संबंध है।
कुंडली में नवम भाव को भाग्य भाव माना गया है ,इस भाव में जिस राशि का आधिपत्य होता है उसके अनुसार ही भाग्योदय का वर्ष तय किया जाता है।
जातक का भाग्येश गुरु हो तो 16 वें वर्ष में
सूर्य हो तो 22 वें वर्ष में
चन्द्रमा हो तो 24 वें वर्ष में
शुक्र हो तो 25 वें वर्ष में
मंगल हो तो 28 वें वर्ष में
बुध हो तो 32 वें वर्ष में
शनि हो तो 36 वें वर्ष में
और यदि भाग्य भाव में में राहु -केतु का प्रभाव हो तो क्रमशः 42 वें या 44वें वर्ष में भाग्योदय होता है। इसके साथ ही भाग्येश का शुभ और बलि होना,भाग्येश का अच्छे स्थान में होना ,भाग्य भाव पर शुभ ग्रहों का प्रभाव एवं दृष्टि होना ,शुभ ग्रहों के साथ युति होना भी आवश्यक है अथवा भाग्येश को बलि करने के उपाय करने चाहिए। साथ ही भाग्य स्थान के स्वामी ( भाग्येश ), केंद्र त्रिकोण के स्वामी ,लाभ स्थान के स्वामी ( लाभेश ),धन स्थान के स्वामी (धनेश ) की दशा हो तो भाग्योदय होता है।
आचार्या दीपिका श्रीवास्तव
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