ज्योतिष में पित्र दोष क्या है और कैसे होता है.?
ज्योतिष में पित्र दोष क्या है और कैसे होता है.?
व्यक्ति के पूर्वज जो पित्र योनि को प्राप्त हो चुके हैं परंतु आज भी मृत्यु लोक में भटक रहें हैं अर्थात जिन्हें मोक्ष की प्राप्ति नही हुई है , ये पूर्वज स्वयं पीडित होने के कारण तथा पित्र योनि से मुक्ति पाना चाहते हैं परंतु आने वाली पीढी की ओर से उन्हे भूला दिया जाता है ,तब पित्र दोष उत्पन्न करता है .
पित्रदोष के कारण - :
पित्रदोष उत्पन्न होने के बहुत से कारण होते हैं .
जैसे -: परिवार में अकाल मृत्यु हुई हो और ऐसी घटनायें बार बार हुईं हों या फ़िर पित्तरों का विधि विधान से श्राद्ध न किया जाता हो या धर्म कार्यों में पित्तरों को याद न किया जाता हो या ,धर्म के विपरीत घर में आचरण या कार्य हो रहे हों , परिवार के किसी सदस्य द्वारा गौ हत्या या किसी निर्दोष व्यक्ति की हत्या की गई हो या भ्रुण हत्या होने पर भी व्यक्ति की कुंडली में पित्र दोष होता है .
पित्र दोष के लक्षण -:
जो घर पित्र दोष से ग्रसित हो वहाँ पारिवारिक कलह बहुत होती है. संतान पक्ष की हानि होती है. पैसों में बरकत नहीं होती है . घर की दीवारों में हमेशा टूट फूट एवं सिलन होती है ,सूर्य की रोशनी कम पड़ती है. यदि घर में मांस मदिरा का सेवन किया जाता है तो ऐसी स्थिति में पित्र दोष होने पर परिवार के सदस्यों को अत्यधिक कष्ट झेलने पड़ते हैं .
पित्र दोष के कारक ग्रह -:
कुंडली में नवम घर में सूर्य और राहु की युति बनने पर पित्र दोष योग बनता है. ज्योतिष के अनुसार सूर्य और राहु जिस भाव में बैठते हैं उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते हैं. नौवा घर धर्म का होता है , इसे पिता का घर भी कहा जाता है. यदि नौवा घर खराब ग्रहों से ग्रसित हो तो यह पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं का सूचक है.
जब सुर्य के साथ राहु की युति होती है तब सूर्य को ग्रहण लगता है . इसी प्रकार जब कुंडली में सूर्य- चंद्र- राहु मिल कर किसी भाव में युति बनाते हैं तब पित्र दोष लगता है.पित्र दोष होने पर संतान पक्ष से कष्ट होता है , विवाह में बाधा या किसी भी महत्वपूर्ण कार्य में बाधा उत्पन्न होती है और असफलता मिलती है .
* चन्द्र लग्नेश और सूर्य लग्नेश जब नीच राशि में हों और लग्न में या लग्नेश के साथ युति या दृष्टि हो और उन पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो तब पित्र दोष लगता है .
* लग्न या लग्नेश कमजोर हो और नीच लग्नेश के साथ राहु और शनि की युति हो या दृष्टि हो तो पित्र दोष होता है .
* अशुभ भावेश शनि या चंद्र से युति या दृष्टि संबंध बनाता हो अथवा चंद्र शनि के नक्षत्र या उसकी राशि में हो तब व्यक्ति की कुंडली में पित्र दोष होता है.
* लग्न में गुरू नीच का हो और उस पर पापी ग्रहों का प्रभाव हो अथवा त्रिक भाव स्वामियों से गुरू दृष्ट या युति बनाता हो तब पित्तर व्यक्ति को पिडा देते हैं .
* नवम भाव में बृहस्पति और शुक्र की युति बनती हो एवं दशम भाव में चन्द्र पर शनि व राहु का प्रभाव हो तो पित्र दोष होता है .
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